


भिलाई/रायपुर, 20 मार्च 2020. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पुलिस की नौकरी बहुत ही चुनौतीपूर्ण है. शहर में हो या घने जंगलों में 24 से 48 घंटे तक लगातार ड्यूटी करते हैं. लेकिन इसी में कुछ ऐसे ही कर्मचारी हैं जो विशेष संरक्षण में सालों साल तक अटैचमेंट करा कर एक ही जगह पर जमा है. प्रदेश पुलिस मुखिया डीजीपी के आदेश के बाद भी इनका अटैचमेंट समाप्त नहीं हो सका….. आखिर क्यों?
जहां एक तरफ बस्तर में ऐसे सिपाही हैं जो सालों साल छुट्टी तक के लिए भी तरसते हैं वही पर जाने से बचने के लिए कुछ सिपाही अपना अटैचमेंट शहर में कराकर 10-0 साल से बैठे हुए हैं. अगर ट्रांसफर हुआ तो कोर्ट का आदेश लेकर बैठ जाते हैं. विभाग कुछ कर नहीं पा रहा है यह जानबूझकर ऐसे लोगों को बैठाये रखा जाता है? उनके ऊपर कार्यवाही नहीं की जा रही है आखिर इनके पीछे किसका हाथ है?
दरअसल एक मामला दुर्ग में सोशल मीडिया में वायरल हुआ जिसमे वीआरएस के लिए आवेदन था. रेडियो दूरसंचार विभाग में प्रधान आरक्षक के पद पर पदस्थ मनोज तिवारी ने अपना इस्तीफा यह कह कर दिया कि उसे एब्सेंट कर दिया गया और प्रताड़ित किया जा रहा है.
मामले की तह तक जाने पर पता चला कि प्रधान आरक्षक की मूल पदस्थापन सातवीं बटालियन भिलाई में है. इसके बाद भी वह 10 वर्षों से पुलिस रेडियो में अटैच है उसकी छुट्टी का प्रकरण था जिस पर रिपोर्ट तैयार करके उसे कमांडेंट को दिया गया था उसे बीजापुर अटैच किया गया था वह आमद देने के बाद वहां से गायब हो गया जिसके बाद टीआई ने रिपोर्ट बनाकर उसके बटालियन के कमांडेंट को कार्रवाई के लिए भेज दिया था. सभी दांव पेच के बाद यह लगता है आरक्षक को अपने मूल पद पर नहीं जाने के अलग अलग बहाने खोज रहा है.
बता दें कि छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक ने 21 जनवरी 2019 को आदेश जारी किया था कि समस्त अटैचमेंट को निरस्त कर दिया गया है. इसके बाद भी मनोज तिवारी का अटैचमेंट खत्म करके उसे अपनी विभाग में नहीं भेजा जा सका. आखिर क्यों? पुलिस विभाग में ही इस तरह की भेदभाव क्यों किया जाता है? कि कुछ लोग अटैचमेंट कराकर बढ़िया जगह पर पड़े रहते हैं दूसरी तरफ कुछ लोगों को छुट्टियां तक नहीं दी जाती हैं ट्रांसफर की दो बात तो बहुत दूर है. ऐसे एक नहीं कई मामले प्रदेश भर में है.
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