संदीप तिवारी, ब्रह्मलीन श्रद्धेय पवन दीवान जी के साथ मुझे रहने का अवसर 24 रकाबगंज गुरुद्वारा रोड, नई दिल्ली के उनके बंगले में हुआ। उनके एक तरफ मुरली मनोहर जोशी जी और दूसरी तरफ एनसीपी के नेता प्रफुल्ल पटेल जी का बंगला था।
उनके परम मित्र बालाघाटी सांसद, कटंगी नरेश श्री विश्वेश्वर भगत जी रोज उन्हें सांसद के लिए लेने आते थे, कभी अपनी पर्सनल गाड़ी में, कभी संसद के लिए चलने वाली सरकारी गाड़ी में और कभी ऑटो में, जो पहले मिल जाए इंतजार एक क्षण का भी मंजूर नहीं था।
जय वीरू की साक्षात जोड़ी मैंने पहली बार देखी थी, बस दोनों का साथ हो, फिर दुनिया के किसी तीसरे आदमी की उन्हें जरूरत ही नहीं होती थी, और ऐसी खुशी, ऐसी स्वच्छंद हंसी, और इतना निश्चल मजाक की लगता था कि घर में बड़ों कि गैर मौजूदगी में दो बच्चे आपस में खूब मस्ती कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ से लक्ष्मी पुत्रों का आगमन भी होते रहता था और वह आग्रह करते थे कि दीवान जी उनके साथ किसी फाइव स्टार होटल में चलें, ऐसे में दीवान जी किचन में आकर मुझसे बोलते थे धनिया मिर्ची पताल के बने सिल लोढ़ा में चटनी, अउ बने टरटर्र ले अम्मठ कढ़ी बनवा के रखो, मैं फाइव स्टार वालों को विदा कर के आता हूं ।
कांग्रेस के ये ऐसे सांसद थे,जो जनसंघ से आए और एक तरफ कम्युनिस्ट साहित्य और विश्व राजनीति पढ़ते तो दूसरे ही पल अपने गृह ग्राम किरवई फोन लगा कर बारी बखरी की बात करते थे।
एक ऐसे मस्त मौला फ़कीर जिनके विश्राम के समय एक शिष्य ने उन्हें गहरी नींद से उठा कर बताया कि आपसे मिले बर मुख्यमंत्री आय हे,तो उनका जवाब “मुख्यमंत्री आए हे, त का नाचौं?” और करवट बदल कर वापस सो जाना, ऐसा दुनियादारी में शून्य, किसी बेफिक्र फ़कीर के ही लक्षण हो सकते हैं।
ऐसी पवित्र आत्मा, छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र, छत्तीसगढ़िया अस्मिता के प्रतीक ब्रह्मलीन संत कवि पवन दीवान को सत सत नमन।
(लेखक संदीप तिवारी संत पवन दीवान के भांजे हैं)
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