रायपुर। एसजी न्यूज। छत्तीसगढ़ में हाथी मानव द्वन्द से हो रही मौते फिर से एक सवाल खड़ा कर दिया है कि जो कथित कुनकी वन विभाग ने कर्नाटक से लाये थे उनका उपयोग क्या है? वर्ष 2017 में लगभग दो-तीन माह तक यह संदेश देने के बाद कि छत्तीसगढ़ में कर्नाटक से “डान” रूपी कुनकी हाथी लाये जाने के बाद कुनकी हाथी, वन हाथियों को पकड़ लेंगे और मानव-हाथी द्वन्द्व समाप्त हो जावेगा, फरवरी 2018 में छत्तीसगढ़ वन विभाग कर्नाटक से 5 कुनकी हाथी लाया। इन कुनकी हाथियों के लाये जाने के बाद आम जन तथा मीडिया में यह चर्चा रही है कि लाये गये हाथी “कुनकी” हाथी है हीं नहीं। इसी बीच एस.जी. न्यूज को वन विभाग का एैसा पत्र मिला है जिससे प्रमाणित होता है, लाये गये हाथी कुनकी हाथी नहीं है। छत्तीसगढ़ ने तो कर्नाटक से एैसे हाथी मांगे थे जो गश्ती कर सके और जिनको कुनकी बनाने की संभावना हो। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) छत्तीसगढ़ ने कर्नाटक के समकक्ष अधिकारी को 4 अगस्त 2017 को पत्र लिखा कि छत्तीसगढ़ में हाथी-मानव द्वन्द्व को मैनेज करने के लिये विशेष रूप से हाथी प्रभावित क्षेत्रों में गश्त करने और वन हाथियों को मानव क्षेत्र से भगाने के लिये 5-6 हाथियों की जरूरत है और हम एैसे हाथी लेना पसंद करेंगे जिनमें से कुछ को प्रशिक्षित कर कुनकी बनाने की संभावन हो।
We need 5-6 elephants for managing HEC, particularly for patrolling the wild elephant affected areas and driving away the wild elephant from human habitation. We would perfer to have a few elephants having potential to be trained as Kumki.
वास्तव में कुनकी हाथी वो बन्धक हाथी होते है जो कि अत्याधिक मजबूत और हिम्मती होते है। ब्रिटिश काल में लिखी गई “एैलीफेन्ट गोल्ड” नामक किताब में पी.डी. स्ट्रेसी ने कुनकी हाथियों के बारे में चर्चा की है। उस जमाने में वन हाथियों को पकड़ने में कुनकी हाथियों का उपयोग किया जाता था परंतु 1972 मंे वन्यप्राणी (संरक्षण) अधिनियम लागू होने उपरांत अब वन हाथी को पकड़कर बन्धक नहीं बनाया जा सकता। कर्नाटक से जो हाथी लाये गये है उनमें एक हाथी परशुराम की उम्र तो सिर्फ 13 वर्ष है जिसके बारे में प्रचारित किया गया था कि वह वन हाथियों को बन्दी बनाने में सहयोग करता है। जानकारों का कहना है कि 12-13 वर्ष का हाथी शावक क्षेणी का ही माना जावेगा एैसे में वन हाथियों से परशुराम का टकराव परशुराम के लिये घातक हो सकता है।
आपको बता दें कि वन विभाग को कर्नाटक में स्थित हाथियों के दो कैंप से 3-3 हाथी महासमुंद लाने थे जो कि अनुमानित 2000 कि.मी. दूर हैं। एक 10 चक्का लारी में 3 हाथी लाने थे। बिना टेन्डर निकाले ट्रक भाड़ा रू. 100 कि.मी. प्रति हाथी तय किया गया। प्रति ट्रक रू. सात लाख कुल रू. 14 लाख देना प्रस्तावित किया गया था। छत्तीसगढ़ में सिर्फ पांच हाथी लाये गये। एक हाथी क्यों नहीं लाया गया इसका खुलासा वन विभाग ने कभी नहीं किया। इन हाथियों को सिरपुर के पास कैंप में रखा गया है। यह जानना भी रोचक है कि वर्ष 2015 में छत्तीसगढ़ के कहने पर कर्नाटक 25 कैंप हाथी देने के लिए तैयार हो गया था। कर्नाटक में हाथी कैंप में हाथियों की संख्या बढ़ने से वहां कैंप हाथी भी आर्थिक रूप से समस्या है एैसे में 5 हाथी छत्तीसगढ़ को देने से कर्नाटक को कुछ तो राहत मिली होगी। लेकिन छत्तीसगढ़ को इससे क्या मिला? ये सवाल जनता जरूर जानना चाहती है।
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