20 अलग अलग जंगली प्रजाति के 11000 पौधो का 1.25 एकड़ ज़मीन में सिंचित रोपण किया गया है।
भानुप्रतापपुर, 15 अक्टूबर 2020. वन क्षेत्र जहा लगातार घट रहा है वही छत्तीसगढ़ का वन विभाग लगातार नई तकनीक को अपनाकर वन क्षेत्र को बढ़ने का प्रयास कर रहा है. इसी कड़ी में बस्तर में पूर्व भानुप्रतापुर वनमंडल वनमण्डलाधिकारी मनीष कश्यप ने नया प्रयोग करते हुए मियावकी तकनीक से वृक्षारोपण करवाया है. छत्तीसगढ़ में इस तकनीक का पहलीबार उपयोग किया गया है. यह तकनीक सामान्य वृक्षारोपण से भिन्न है।
क्या है तकनीक ?
वृक्षारोपण की इस तकनीक में पौधों को बहुत पास पास लगाया जाता है जिससे 1-2 साल की बढत के बाद सूर्य की प्रकाश ज़मीन तक नही पहुँच पाती है और ज़मीन की आद्रता और ह्यूमस बना रहता है और घास फूस भी नही उगता । इससे पौधों में अच्छी ग्रोथ होता है। पहले ज़मीन को एक मीटर तक खुदाई करते हैं फिर मिट्टी को अच्छे से मिक्स करके खाद और भूसा मिलाते है। फिर पौधारोपण करके ज़मीन को पैरा से ढँक देते हैं। इससे ज़मीन में नमी और उपजाऊ पन बना रहता है जिससे पौधा जल्दी बढ़ते हैं। जंगल की तरह प्राकृतिक माहोल देने की कोशिश की जाती है इस तकनीक में। पैरा भी सङ के खाद कि तरह काम करते है।
10 गुना अधिक तेज़ी से बढ़ते हैं पौधे
मियावकी तकनीक से उगाए गए पौधे 10 गुना अधिक तेज़ी से बढ़ते हैं। 30 गुना ज़्यादा घनत्व होता है। 30 गुना अधिक कार्बन डाई आक्सायड सोखते हैं और हवा और ध्वनि प्रदूषण को रोकते हैं। 20 साल में यह पूरी तरह जंगल का रूप ले लेता है। यह रोपण शहरी क्षेत्रों के लिए बहुत उपयोगी साबित होगी। जहाँ प्लांटेसन के लिए जगह कम है और प्रदूषण ज़्यादा। बैंगलोर और मुंबई जैसे बड़े शहरों में इस तकनीक से अर्बन फ़ॉरेस्ट बनाए गए हैं जो सफल हैं।
पहले भी कई प्रयोग कर चुके हैं मनीष कश्यप
भारतीय वन सेवा के युवा अधिकारी एवं वन मंडल पूर्व भानुप्रतापपुर के डी.एफ.ओ. मनीष कश्यप पहले भी वृक्षारोपण के लिए कोरिया में डीएफओ रहते सीड वाल पद्धति से वृक्षारोपण की तकनीक का प्रयोग किया था. बांस उत्पादन और उसके उत्पाद बनाने में भी कई सफल प्रयोग कर चुके हैं.



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